“भारत काव्य पीयूष” कवियों द्वारा राष्ट्र-वंदन का अनूठा दस्तावेज

चन्द्रकान्त पाराशर , एडीटर-ICN हिंदी
Lausanne(स्विटज़रलैंड) : 10अगस्त 2022 : सर्वविदित है कि हमारा देश भारत वर्तमान में अपनी स्वाधीनता की 75वीं वर्षगाँठ पर अमृत महोत्सव मना रहा है । इस पुनीत अवसर पर भारतीय कवियों द्वारा रचित राष्ट्र-वंदन के अनूठे दस्तावेज के रूप में “भारत काव्य पीयूष“ कविता-संग्रह को 15अगस्त की पूर्व संध्या पर  राष्ट्र के नाम समर्पित किया जाएगा । स्वाधीनता के अमृत-महोत्सव  में  “भारत काव्य पीयूष” पुस्तक की अवधारणा व उसे मूर्त रूप प्रदान करने में वैश्विक हिंदी संस्थान, ह्यूस्टन, अमेरिका के अध्यक्ष डा ओमप्रकाश गुप्ता व उनकी प्रबुद्ध टीम के सदप्रयासों से 8 देशों में बसे भारत के 115 मनस्वियों के हृदय-तल में मातृभूमि के प्रति हिलोरें लेती सद्भावनाओं को काव्य-रूप में सम्पादित-संकलित व प्रकाशित करने का कार्य अत्यंत सराहनीय  है ।इस संग्रह में 175 कविताओं का 11 विषयों में वर्गीकरण किया गया है:-भारत का इतिहास, भारत की संस्कृति, भारत के महापुरुष, स्वतंत्रता संग्राम, भावी भारत, भारत की गरिमा, भारत की समाज व्यवस्था, प्रवासी भारतीय, मेरा भारत, भारत के आराध्य व भारत माता।देश-प्रेमी कवियों की लेखनी से देश व मातृभूमि के प्राचीन व अर्वाचीन दोनों के महिमा गान में समर्पित व्यष्टि से समष्टि की ओर अग्रसर सर्वक़ालिक व प्रासंगिक अनेकों कविताएँ निसृत हुईं हैं जो पाठकगणों में विशेषकर युवा-मन को भरपूर जोश व प्रेरणा से सराबोर करने में सक्षम होंगी । इस काव्य-संकलन में कविता की अन्य प्रचलित विधाओं के साथ-साथ एक नव-विकसित काव्य-विधा ‘ओम आकृति’ विधा भी प्रस्तुत की जा रही है। आरोह-अवरोह पर केंद्रित ये कविताएँ धनुष, हीरे, षट्कोण, अष्टकोण आदि ज्यामितिक आकृतियों का निर्माण करतीं हैं। इसमें प्रत्येक पंक्ति का स्वयं में अर्थपूर्ण होना आवश्यक है; साथ ही हर पंक्ति में एक वर्ण बढ़ता और नियत वर्ण-संख्या तक पहुँच कर प्रति पंक्ति एक वर्ण घटता चला जाता है। ‘जितना चढ़ाव उतना उतार’ इस विधा का मूलमंत्र है। इस नवीन विधा में रचित 11 कविताएँ इस संकलन में प्रकाशित की गई हैं।“वसुधैव कुटुम्बकम”की भारतीय अवधारणा भी तभी चरितार्थ होती परिलक्षित होती है जब हम सब मन,कर्म व बचन से सम्पूर्ण धरा व इसके निवासीयों को एक परिवार की तरह मान कर व्यवहार करते है। भारत काव्य पीयूष भी इस संस्थान की उक्त अवधारणा को ही पुष्ट करता हुआ प्रतीत होता है ।

Related posts